14 अदालतों में कांग्रेस सरकार में लगे राजकीय अभिभाषक कर रहे हैं सरकार की पैरवी

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भाजपा एक साल बाद भी अपने विचार परिवार के अभिभावकों नहीं कर पाई नियुक्त, बीकानेर बार में ये चर्चा बनी आम

बीकानेर // भाजपा सरकार को राज्य में सत्तारूढ़ हुए एक साल बीत चुका है मगर इसके बावजूद वह अदालतों में अपने विचार परिवार के अभिभावकों को राजकीय अभिभाषक नहीं लगा पाई। हालात ये हैं कि अकेले बीकानेर जिले की 14 अदालतों में शासन बदलने के एक साल बाद भी कांग्रेस सरकार में नियुक्त हुए राजकीय अभिभाषक ही सरकार की पैरवी कर रहे हैं। बीकानेर बार में इन दिनों यह चर्चा आम है। हालांकि नया वित्तीय वर्ष शुरू होते ही सरकार ने अपने विचार परिवार के अधिवक्ताओं को राजकीय अभिभाषक बनाने की कसरत शुरू कर दी और उनसे बकायदा आवेदन भी लिए गए। उसके बाद लोकसभा चुनाव आ गए ऐसे में यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया। अब लोकसभा चुनावों को बीते भी 7 माह हो गए मगर अभी तक भाजपा सरकार बीकानेर जिले की एक दर्जन अदालतों में अपनी विचारधारा के अधिवक्ताओं को बतौर राजकीय अभिभाषक नियुक्त नहीं कर पाई। ऐसे में अंदरखाने भाजपा समर्थित वकीलों में बढ़ता जा रहा है।

इन अदालतों में लगे हुए हैं कांग्रेस सरकार के समय से राजकीय अभिभाषक

बीकानेर जिले की विभिन्न 14 अदालतों में कांग्रेस की गहलोत सरकार के समय जो राजकीय अभिभाषक नियुक्त किए गए थे। वे बदस्तूर आज भी अपना काम कर रहे हैं और भाजपा समर्थित वकीलों को मुंह चिढ़ा रहे हैं। बीकानेर में जिला एवं सत्र न्यायालय के सहित अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायालय संख्या 1 से 7 तक में अभी भी कांग्रेस विचारधारा के वकील बतौर राजकीय अभिभाषक कार्यरत है। इसके अलावा बीकानेर शहर में तीन विशिष्ट न्यायालयों में भी यही स्थिति हैं। यहां विशिष्ट न्यायालय अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार के प्रकरणों की सुनवाई करने वाली डीजे स्तर की कोर्ट में, महिला उत्पीडन के मामलों की सुनवाई करने वाले विशिष्ट न्यायालय सहित विशिष्ट न्यायालय पॉक्सो में भी पांच साल पहले कांग्रेस सरकार के समय नियुक्त किए गए राजकीय अभिभाषक यथावत कार्यरत है। इसी तरह डूंगरगढ़ व नोखा में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायालय में भी राजकीय अभिभाषक कांग्रेस सरकार ने नियुक्त किए थे। वे भी सरकार बदल जाने के बाद भी काम कर रहे हैं। खाजूवाला में नया एडीजे कोर्ट खुल गया मगर बीजेपी सरकार वहां भी अभी तक राजकीय अभिभाषक नियुक्त नहीं कर पाई है।

200 आवेदनों की भीड़ तो इसका कारण नहीं

उदय भास्कर ने जब इस लेटलतीफी की छानबीन की तो पता चला कि लोकसभा चुनावों से पहले ही सरकार ने आवेदन मांग लिए थे। बीकानेर जिले से 200 से ज्यादा वकीलों ने राजकीय अभिभाषक नियुक्त होने के लिए आवेदन किए गए थे। जानकारों की मानें तो आवेदनों की संख्या ज्यादा होने के कारण भाजपा का प्रदेश नेतृत्व एवं सरकार के मुखिया भी असमंजस की स्थिति में हैं।

भाजपा में गुटबाजी भी दूसरा बड़ा कारण

उधर सरकार की ओर से राजकीय अभिभाषक मनोनयन में हो रही देरी का दूसरा बड़ा कारण आपसी गुटबाजी के रूप में भी सामने आया। जानकारों की मानें तो यहां केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल, केबिनेट मंत्री सुमित गोदारा, विधायक जेठानंद व्यास, अंशुमानसिंह भाटी, ताराचंद सारस्वत, सिद्धिकुमारी, डा. विश्वनाथ आदि ने भी अपने अपने समर्थक वकीलों के लिए सरकार को अभिशंसा कर रखी है। ऐसे में भारी गुटबाजी के कारण भी राजकीय अभिभाषकों के मनोयन में देरी बड़ा कारण बनकर सामने आई है। उधर कई आवेदक तो मायूस से हो गए हैं। उन्होंने दबे रूप में यह स्वीकार किया कि केंद्रीय कानून मंत्री के रूप में बीकानेर सांसद व राज्य में केबिनेट मंत्री सुमित गोदारा यूं तो अच्छी परफोरमेंस दे रहे हैं मगर वे इतने बड़े ओहदे पर होने के बावजूद उनकी नाक के नीचे कांग्रेस विचारधारा के अधिवक्ता बतौर राजकीय अभिभाषक सेवाएं दे रहे हैँ ये शर्मनाक स्थिति हैं। आवेदक वकीलों का मानना है कि सभी जनप्रतिनिधि अपने अपने आदमियों को फिट करने के चक्कर में समय निकाल रहे हैँ और देखते देखते भाजपा सरकार का एक वर्ष का कार्यकाल खत्म हो गया मगर राजकीय अभिभाषकों की नियुक्ति अभी तक सरकार नहीं कर पाई है। यही वजह है कि बीकानेर बार में जब देखो तब लंच के दौरान चाय की थडि्यों पर वकील समुदाय आपस में राजकीय अभिभाषकों की नियुक्ति के मद़्दों पर ही बातचीत करते नजर आते हैं।

तीन जिलों में आए नियुक्ति आदेश मगर बीकानेर फिर भी वंचित

उधर देर शाम हनुमानगढ़, चित्तौड़गढ़ व टौँक जिले में सरकार ने 8 जनवरी को ही राजकीय अभिभाषक नियुक्त किए हैं। राज्य सरकार के विधि एवं विधिक कार्य विभाग (राजकीय वादकरण) में राजकीय अभिभाषकों की नियुक्ति की गई है मगर बीकानेर के लिए किसी तरह के आदेश नहीं निकले हैं। ऐसे में यहां के 200 से अधिक आवेदकों को फिर निराशा हाथ लगी है। बहरहाल, बीकानेर जिले की 14 अदालतों में राजकीय अभिभाषक कब नियुक्त होंगे ये तो सरकार जानें मगर यह सच है कि इस लेटलतीफी के चलते अंदरखाने भाजपा विचार परिवार के अधिवक्ताओं में रोष फैलता जा रहा है।