चुनावी पोस्टमार्टम
प्रमोद आचार्य
नागौर // रविवार को होने जा रही मतगणना में में कई बडे दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। कई नेताओं का यह अंतिम चुनाव भी साबित होने जा रहा है तो कई नेताओं की राजनीतिक दुकान चल भी सकती है तो कई नेताओं को परिणामों के बाद अपनी कूटनीति व राजनीतिक विचारधारा में परिवर्तन भी करना पड सकता है। इसलिए आज का ये पोस्टमार्टम नागौर के उन नेताओं के ईद गिर्द रहेगा जिन पर पूरे प्रदेश की साथ ही उनकी पार्टी के आलाकमान की भी नजर है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि ये चुनाव परिणाम कई नेताओं की दशा व दिशा परिवर्तन करेगा।
सबसे पहले बात आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल की
आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल अपनी परम्परागत सीट खींवसर से इस चुनाव मैदान में उतरे हुए हैं। उनका मुकाबला अपने ही पुराने साथी रेंवतराम डांगा से हैं। डांगा कोई बडे नेता नहीं है वे बेनीवाल के ही एक कार्यकर्ता रहे हैं मगर बीजेपी ने उन्हें हनुमान से तोडकर खींवसर से टिकट थमा दिया। डांगा को बीजेपी में शामिल कराने में कई नेताओं की भूमिका रही है। बीजेपी ने बेनीवाल को घर में ही घेरने के लिए ये बडा प्लान बनाया मगर इसके बावजूद हनुमान निडरता से पेश आए और पूरे राज्य में हेलीकॉप्टर में घूम घूम अपनी पार्टी के प्रत्याशियों के लिए आमसभा करते रहे। बेनीवाल की आरएलपी ने इस बार राजस्थान में 81 प्रत्याशी उतारे हैं। वर्ष 2018 के चुनावों में 54 प्रतयाशी उतारे थे हालांकि तब 3 प्रत्याशी चुनाव जीते थे तथा बाद में उपचुनाव में उनके भाई नारायण बेनीवाल खींवसर से ही चुनाव जीत गए थे। इस बार बेनीवाल बडा दावा कर रहे हैं। वे 15 से 20 सीटों पर जीत का दावा कर रहे हैं। यदि ऐसा हुआ तो सत्ता की चाबी हनुमान बेनीवाल के हाथ में रहेगी मगर यदि ऐसा नहीं हुआ तो हनुमान बेनीवाल को इसका नुकसान होगा। उनकी खुद की सीट पर ही भाजपा ने उन्हें घेरकर उनके खिलाफ माहौल बना दिया इसलिए खींवसर जीतना भी बेनीवाल के लिए बडा काम हो गया है। आरएलपी का यदि अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा तो पिफर बेनीवाल को पूर्व की भांति सत्तारूढ पार्टी के खिलाफ केवल बयानबाजी करते ही नजर आएंगे। इसके बाद उन्हें लोकसभा चुनावों के लिए कडी मेहनत करनी पडेगी।
दो पूर्व मंत्रियों पर भी रहेगी प्रदेश की नजर
इस चुनाव में बागियों की भरमार रही है और हमारा नागौर की अछूता नहीं रहा है। यहां से दो पूर्व मंत्री बागी होकर चुनाव लडे थे। भाजपा के पूर्व मंत्री युनूस खान को इस बार भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो उन्होंने डीडवाना से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लडा वहीं नागौर से कांग्रेस के पूर्व मंत्री रहे हबीबुरर्हमान कांग्रेस के खिलापफ निर्दलीय मैदान में आ गए। युनूस खान व हबीबुरर्हमान अल्पसंख्यक समाज के बडे नेता हैं और दोनों को उनके दलों ने टिकट नहीं दिया। ऐसे में अपने अस्तित्व की लडाई लडने ये दोनों नेता बागी हो गए। अब इन दोनों नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। यदि दोनों नेता चुनाव हार जाते हैं तो भविष्य में डीडवाना व नागौर सीट से भाजपा व कांग्रेस कभी भी अल्पसंख्यक समुदाय को टिकट नहीं देगी। यदि हबीबुरर्हमान चुनाव हारते हैं तो ये उनका अंतिम चुनाव ही रहेगा इसके बाद वे आगामी विधानसभा चुनाव नहीं लड नहीं पाएंगे उनका राजनीतिक भविष्य डगमगा जाएगा। वहीं यदि युनूस खान चुनाव हारते है तो उम्र के लिहाज से उन्हें पार्टी बदलनी पडेगी क्योंकि अब उनका भाजपा में कोई भविष्य नहीं है। ऐसे में इन दोनों मुस्लिम नेताओं पर पूरे प्रदेश की नजर रहेगी।
मिर्धा परिवार पर टिकी है सबकी नजरें
इस चुनाव में चार मिर्धा चुनाव मैदान में है। इनमें से तीन क्रमश पूर्व मंत्री हरेंद्र मिर्धा, विजयपाल मिर्धा व तेजपाल मिर्धा कांग्रेस के टिकट पर मैदान में है तो पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा इस बार कांग्रेस से नाता तोड भाजपा के टिकट पर मैदान में है। अब सबसे बडा सवाल ये है कि इन चार मिर्धाओं में से कौन कौन चुनाव जीतेगा। संयोग से दो मिर्धा जो आपस में सगे चचेरे भाई है क्रमशः विजयपाल व तेजपाल मिर्धा अलग अलग सीटों से चुनाव लड रहे हैं तो ज्योति मिर्धा व हरेंद्र मिर्धा जो रिश्ते में चाचा भतीजी है वे नागौर सीट से आमने-सामने हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि इन चार में से कोई तीन चुनाव जीत जाते हैं तो नागौर में एक बार पिफर मिर्धा परिवार की तूती बोलेगी और दोनों दल भविष्य में मिर्धाओं पर ही दांव खेलेंगे। अब केवल नागौर ही एक सीट ऐसी बची है जहां कांग्रेस जीतो या बीजेपी, एक मिर्धा तो जरूर चुनाव जीत जाएगा मगर डेगाना में वर्तमान विधायक विजयपाल मिर्धा व खीवसर से उतरे तेजपाल मिर्धा की प्रतिष्ठा दांव पर है। तेजपाल नए चेहरे के रूप में पहली बार ही विधानसभा चुनाव लड रहे है तो विजयपाल का यह दूसरा चुनाव है। दोनों युवा नेता है इसलिए इस चुनाव में उनके हार जाने के बाद भी उनके भविष्य पर कोई आंच नहीं आएगी क्योंकि उनके पास राजनीतिक क्षेऋ में अपनी पकड बढाने के लिए पर्याप्त समय है। जबकि हरेंद्र मिर्धा का यह आखिरी चुनाव साबित होगा। वे पहले से ही लगातार 4 बार चुनाव हारे हुए भी है मगर पिफर भी कांग्रेस ने उन पर दांव खेला है इसलिए ये हरेंद्र मिर्धा का अंतिम चुनाव ही रहेगा। यदि हरेंद्र मिर्धा यहां हार जाते है तो इसके बाद कांग्रेस नागौर सीट से मिर्धाओं पर कभी दांव नहीं खेलेगी। उधर ज्योति मिर्धा भी कांग्रेस से एक बार सांसद चुनी गई और इसके बाद लगातार 2 बार लोकसभा का चुनाव हारी। यदि वे हारती है तो उनकी हार की हैट्रिक हो जाएगी। ऐसे में ज्योति मिर्धा के राजनीतिक भविष्य पर खतरे के बादल मंडारने की आशंका रहेगी, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। यदि ज्योति मिर्धा चुनाव हार जाती है तो भाजपा में उनका कद घटेगा और यदि जीत जाती है तो भाजपा में उनका कद बढेगा। ज्योति के विधायक बनने के बाद उनके लोकसभा चुनावों में भी उतने की पूरी संभावना बनी रहेगी मगर यदि वे हार जाती है तो पिफर उन्हें पांच साल तक इंतजार ही करना पडेगा।
बहरहाल, इन सभी नेताओं के भाग्य का फैसला रविवार की दोपहर तक स्पष्ट रूप से सामने आ जाएगा। इसके बाद ही नागौर जिले के नेताओं के भविष्य की तस्वीर साफ हो पाएगी। राजनीतिक पंडितों की मानें तो 2023 का ये चुनाव परिणाम नागौर में राजनीति की नई इबारत लिखने वाला भी साबित होगा। ऐसे में आशंका है कि ये चुनाव कई नेताओं की राजनीतिक दुकानें हमेशा के लिए बंद कर देगा तो कइयों की राजनीति उडान को गति भी प्रदान करेगा।