के के उपाध्याय
आज बसंत पंचमी है । सरस्वती पूजा का भी दिन है । इस देश की विविधता प्रकृति से जुड़ी हैं । प्रकृति हमसे जुड़ी है । शरद ऋतु अवसान पर है । ग्रीष्म आने को है । यह बीच का मौसम है । हल्की गुलाबी सर्दी । महकती हवाएँ । खेतों में लहलहाती पीली पीली सरसों । प्रकृति के इस उत्सव में प्रेम छलकता है । महकता है । मन में मादकता छाने लगती है । यहाँ प्रकृति झूम रही है । नृत्य कर रही है । बसंत जब आता है , मन महक-महक जाता है । बहक – बहक जाता है । बसंत उत्सव का प्रतीक नहीं है । बसंत तो एक उत्सव है । यहाँ नृत्य भी है । संगीत भी है । अल्हड़ नाद भी है। सुनाई देता है , हवाओं में । पत्तों की सरसराहट में । खेतों में । गाँवों में । मन में । मन के हिंडौले में बसंत छा जाता है । यह प्रकृति का सौंदर्य है । श्रृंगार है । खिली खिली सी महकती धूप । सुहाती और सहलाती नरम हवाएँ । मन को बसंत कर देती है । यह सरस्वती का उत्सव है। सरस्वती ज्ञान की धारा है । संगीत की धुन है । नृ्त्य की ताल है । इस ताल से हम हैं । हमसे ही बसंत है । आओ बसंत में खो जाएँ । थोड़ा बसंत हो जाएँ ….।
लेखक परिचय
के के उपाध्यक्ष पत्रकारिता के नामचीन हस्ताक्षर है। आप राजस्थान में दैनिक भास्कर के विभिन्न संस्करणों के संपादक रह चुके हैं। इसके अलावा आप अमर उजाला के मीडिया सलाहकार रहे हैं। अपने भारत के अमृत काल पर और मोदी सरकार के 9 साल की उपलब्धियों पर एक किताब का भी प्रकाशन किया था। आप अमर उजाला के संपादक रहे और हिंदुस्तान अखबार में लंबे समय तक स्टेट हेड के पद को भी सुशोभित करते रहे। आप एक राष्ट्रवादी लेखक भी है।