भाजपा को दिलाई थी गांवों में पहचान
2 बार विधानसभा व 1 बार लोकसभा का लड़े थे चुनाव
बीकानेर // भैरोसिंह शेखावत और ललित किशोर चतुर्वेदी के युग के वरिष्ठ भाजपा नेता ओम आचार्य का गुरुवार श्याम निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार थे तथा इन दोनों हल्दीराम अस्पताल में भर्ती थे। देर शाम उनके निधन का समाचार मिलते ही उनके समर्थको व भाजपा में शोक की लहर छा गई। ओम आचार्य ने 1980 व 1989 के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी थी। हालांकि दोनों बार उनको हार का सामना करना पड़ा मगर वह मामूली अंतर से ही चुनाव हारे। उसके बाद पार्टी ने उन्हें बीकानेर लोकसभा क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बनाया है। यह वो दौर था जब भाजपा से लोकसभा का टिकट लेने के लिए एक भी दावेदार सामने नहीं आया। उस समय ओम आचार्य ने भाजपा का टिकट लेकर गांव गांव प्रचार किया। उस चुनाव में माकपा नेता श्योपत सिंह मक्कासर चुनाव जीते थे लेकिन उनके सामने दो नंबर ओम आचार्य ही रहे। इस तरह ओम आचार्य ने भाजपा को गांव-गांव तक पहुंचाया। वे लंबे समय से सक्रिय राजनीति से दूर भी थे। उनकी राजनीतिक विरासत को उनके भतीजे विजय आचार्य पूरी शिद्दत के साथ निभा रहे हैं। विजय आचार्य अभी शहर भाजपा के जिला अध्यक्ष है। ओम आचार्य आरएसएस के सक्रिय स्वयंसेवक भी रहे तथा प्रचारक की भूमिका भी निभाई। वे अच्छे पत्रकार व लेखक भी थे।
पिता दाऊ दयाल आचार्य से मिली राजनीतिक सीख
ओम आचार्य को राजनीतिक विरासत अपने पिता स्वर्गीय दाऊ दयाल आचार्य से मिली। एडवोकेट दाऊ दयाल आचार्य रेवेन्यू के सबसे प्रतिष्ठित वकील थे। वे स्वतंत्रता सेनानी भी थे। उन्होंने आजादी के आंदोलन में पूरी ताकत के साथ भाग लिया। वे कड़वा सच नामक एक अखबार भी प्रकाशित करते थे। जिसका प्रकाशन बाद में ओम आचार्य ने खुद ने संभाला। इस तरह अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए ओम आचार्य राजनीति में उतरे। एक वह दौर था जब ओम आचार्य ही भाजपा की ऑक्सीजन बने हुए थे। रेवेन्यू के क्षेत्र में नामचीन वकील का दर्जा हासिल करने के कारण भी ओम आचार्य का नाम विधि के क्षेत्र में पूरे आदर के साथ लिया जाता है। अब उनकी यह विरासत उनके बड़े पुत्र जगदीश आचार्य संभाल रहे हैं।
प्रखर वक्ता थे इसलिए जेल भी गए
वरिष्ठ भाजपा नेता ओम आचार्य एक प्रखर नेता थे और शानदार वक्ता भी थे। इसी कारण उन्हें दो बार जेल भी जाना पड़ा। वे आपातकाल के दौरान भी जेल में बंद रहे इसके उपरांत राम जन्मभूमि के आंदोलन के दौरान यूपी पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर उनाव जेल में डाल दिया था। वे ओजस्वी वक्ता के रूप में खूब चर्चित रहे।